Monday 10 August 2015

एक राजा था एक रानी थी......( कहानी)

चक्रवर्ती सम्राट पृथ्वीराज चौहान की स्मृति में होने वाले इस राज्य उत्सव का तीसरा दिन चित्रकला प्रदर्शनी के लिये जाना जाता है। सभागार की दीवारों पर एक से बढ़कर एक चित्र लगाए गए हैं। इन चित्रों में कहीं शिकार करता हुआ सिंह है तो कहीं कुंलाचे मारता हुआ हिरण समूह।कहीं पलाशवन में प्रिय की स्मृति हृदय में लिये किसी विरहिणी का चित्र है तो कहीं चार बांस चौबीस गज ऊपर बैठा सुल्तान है और नीचे से शब्दभेदी बाण चलाते पृथ्वीराज चौहान। विभिन्न राज्यों के राजकुमार राजागण आमात्य और साधारण जन इन चित्रों को देखकर चित्रकार की प्रशंसा करते नहीं थकते। महोबा का राजकुमार विशालदेव सिंह चौहान इन चित्रों पर उचटती हुई दृष्टि डालकर आगे बढ़ जाता है। इन चित्रों में उसे आनंद नहीं मिलता। वह अतिथियों के लिये बनाए गए विश्रामगृह में आकर बैठ जाता है। तभी सभागार का मुख्य रक्षक आकर बताता है कि -राजकुमारी प्रीति सिंह चौहान के चित्र सभागार में प्रदर्शनी हेतु रख दिए गए हैं। राजकुमार -प्रहरी! अब इच्छा नहीं जाओ। प्रहरी-राजकुमार! बाद में इतनी भीड़ हो जाएगी कि आप देख न पाएंगे। पूरा सभागार उनके चित्रों के सम्मुख ही होगा। राजकुमार-क्या इतने अच्छे चित्र हैं उनके? किस शैली में हैं? प्रहरी-जी। अद्वितीय कला है उनके पास। बूँदी शैली में सिद्धहस्त हैं वो। राजकुमार उत्कंठा से उठ खड़ा हुआ, प्रहरी ने पादुका सम्मुख रखी। राजकुमार विस्फारित नेत्रों से चित्रों को देख रहा है। आह!नृत्य करते हुए मयूर, वर्षा की ऋतु, उमड़ती हुई घटाएँ, और प्रसन्नता से देखती हुई एक बालिका....। राजकुमार जैसे भींगने लगा। एक क्षण को उस चित्र के सम्मोहन में फंस गया। हृदय ने कहा-इस काल्पनिक चित्र को बनाने वाली राजकुमारी वास्तव में कैसी होगी?            मलयपुरम के इस वार्षिक आयोजन का चौथा दिन धनुर्विद्या के लिये विख्यात है। जलभेदी और शब्दभेदी बाण कला में विजयी प्रतिभागियों को राजा बलवंत सिंह चौहान स्वयं पुरस्कृत करते हैं। दिन का दूसरा पहर आते आते सैकड़ों प्रतिभागी प्रतियोगिता से बाहर हो गए। जल भेदी बाण प्रतियोगिता में तालाब के स्वच्छ जल में तलहटी में स्थित कृत्रिम मछलियों पर निशाना लगाया जाता है। और शब्दभेदी बाण प्रतियोगिता में आँखों पर पट्टी बाँधकर मात्र ध्वनि सुनकर कबूतरों पर निशाना लगाना होता है।मात्र पाँच राजकुमारों ने ही जलभेदी प्रतियोगिता उत्तीर्ण की है।अब शब्दभेदी प्रतियोगिता के लिये पाँचों राजकुमारों की आँखों पर पट्टी बाँध दी गई है। पूरी दर्शक दीर्घा में सन्नाटा फैला है। इस प्रतियोगिता में शिशुओं का प्रवेश वर्जित है। राजा का संकेत मिलते ही एक सैनिक ने कबूतर उड़ाया।उधर कबूतर गुटुर-गूं करते उड़ा इधर चार तीर कमानों से एक साथ निकले और कबूतर के बिल्कुल आसपास से निकल गए। कुछ क्षण बाद ही कमान से निकला पाँचवा तीर कबूतर को लेकर नीचे गिरा। सभा में एक शोर उठा-राजकुमार विशालदेव सिंह की -जय!!               श्रावण मास का आदित्यवार। राजमंदिर के घंटों की ध्वनि से राजकुमारी प्रीति की नींद टूटी तो देखा कि सूर्योदय कब का हो गया है। उसने सखियों को आवाज दी और जल्दी से वस्त्रादि तैयार करने का आदेश दिया। राजमहल के अन्त:पुर में स्थित सरोवर की सीढ़ियाँ उतरते हुए चंपा ने हास्य किया-राजकुमारी! आज स्वप्न में कौन सा राजकुमार आया था जो नींद नहीं टूट रही थी? राजकुमारी ने शरमाते हुए कहा-धत्त। तू भी न!...और वातावरण एक साथ कई लड़कियों की सुमधुर हंसी से गूंज उठा। सरोवर के चारों ओर फूलों की क्यारियाँ लगी हुई हैं। कुछ वृक्ष भी कतार से खड़े हैं मानो सरोवर के पहरेदार हों। ऊपरी वस्त्र उतारते हुए राजकुमारी को पीछे पेड़ की घनी पत्तियों के बीच कुछ सरसराहट सुनाई दी। राजकुमारी ने बैठे बैठे ही कपड़ों के बीच में रखा चाकू निकाल लिया। तभी पत्तियों में फिर हरकत हुई और इधर बिजली की तेजी से राजकुमारी ने चाकू चला दिया। पत्तियों की सघनता से अनियंत्रित होकर कोई नीचे गिर पड़ा। राजकुमारी ने कमर से कटार निकाल कर उसके सीने पर रखते हुए कहा-धृष्ट अजनबी! क्या तुम्हें पता नहीं कि राजभवन के अन्त:पुर में आमात्य और ब्राह्मण के अतिरिक्त कोई प्रवेश नहीं कर सकता? अजनबी ने कराहते हुए कहा-राजकुमारी! दीवारों पर बने इन चित्रों को देखते देखते मैं कब इधर आ गया; पता ही न चला। राजकुमारी ने कहा-इन चित्रों से तुम्हें क्या मतलब? तुम हो कौन? तभी चंपा बोल उठी-राजकुमारी! वस्त्रों से तो यह चोर नहीं लगता। पर प्रहरियों को दे देना ही उचित होगा। कुछ क्षण बाद चार प्रहरी जंजीरों में बाँधकर उस अजनबी को लेकर चले गए। और इधर राजकुमारी तथा सखियाँ स्नान से निवृत्त हुईं।             महाराज बलवंत सिंह चौहान ने जैसे ही राज्य की गोपनीय बैठक भंग की,प्रतिहारी ने आकर कहा-महाराज की जय हो!मलयपुरम की राजकुमारी प्रीति सिंह चौहान अभी आपसे मिलने को इच्छुक हैं। महाराज ने कहा-ठीक है हम आ रहे हैं। महाराज के आने पर राजकुमारी ने भावावेश में कहा-महाराज की जय हो! बलवंत सिंह ने हँसते हुए कहा-मैं तुम्हारा पिता हूँ। महाराज तो राज्य की जनता के लिये हूँ। राजकुमारी ने रोष में कहा-राजा पूरे राज्य के लिये पिता ही होता है महाराज। बलवंत सिंह समझ गए कि कोई गहरी बात है। उन्होंने शय्या पर बैठते हुए कहा-प्रीति क्या बात है? क्या किसी अनुचर ने धृष्टता की? राजकुमारी ने कहा-इस राज्य में एक ऐसी भी हतभागिनी दुहिता है जिसके पिता के पास उसके लिये अवकाश नहीं। महाराज ने गंभीर स्वर में कहा- ऐसा नहीं है राजकुमारी। चौहान वंश अपने पराभव की ओर अग्रसर है। राजागण अपने आमोद-प्रमोद में व्यस्त हैं। इधर विदेशियों का आक्रमण बढ़ता जा रहा है।मैंने महोबा के राजा अमरपाल सिंह चौहान से मदद माँगी है।इसी कारण व्यस्तता अधिक है इन दिनों। राजकुमारी ने आश्चर्य से कहा-क्या! इन आततायी दस्युओं का इतना दुस्साहस कि गौरवशाली चौहान वंश से युद्ध करें... अरे हाँ पिताजी! आज तो एक दस्यु हमारे अन्त:पुर तक आ गया था। मैंने सैनिकों से उसे कारागार में डलवा दिया। अब बताइए राज्य की ओर से मेरा पुरस्कार क्या है? महाराज ने हँसते हुए कहा-राजकुमारी! तुमने जिसे दस्यु समझ कर कटार मार दिया वो महोबा का राजकुमार विशालदेव सिंह चौहान है। राज्य की प्रतियोगिता का विजेता। वह राजकीय अतिथि है, तुम्हारे चित्रों का अध्ययन करने आया है यहाँ।वह भूलवश सरोवर की ओर चला गया था। और तुम लोगों को आते देखकर पेड़ों में छुप गया था...। राजकुमारी की आँखों में आँसू आ गए-हाय!एक निरपराध कारागार में है मेरे कारण। यह तो अनर्थ हो गया। पिताजी आप मुक्त कर दें उसे। मैं क्षमाप्रार्थी हूँ। महाराज ने हँसते हुए कहा-कोई बात नहीं। विशालदेव स्वयं समझदार है। उसने बताया कि सब अनजाने में हुआ। और राज्य अतिथि दण्डमुक्त होता है। अत:वह कारागार में नहीं है। उसका उपचार हो रहा है।            सन्ध्या का समय। मन्दिरों में सन्ध्या आरती गूंज रही है। कुल देवी तुलजा भवानी के मंदिर की दीवारों पर लगे चित्रों को दिखाती हुई राजकुमारी ने विशालदेव से कहा-यह हंसों का जोड़ा है। अपने प्रेम की वारिधि में डूबता-उतराता। इनकी दुनिया बस एक दूसरे तक ही सीमित है। राजकुमार ने राजकुमारी के मुख पर गहरी दृष्टि डालते हुए कहा-राजकुमारी! प्रेम और विवाह के बारे में तुम क्या सोचती हो? राजकुमारी के मुख पर एक क्षण को कई भाव आए और गए।उसने कहा-राजकुमार! प्रेम उन्मुक्त है। सभी सीमाओं बन्धनों और तर्कों से परे। विवाह सामाजिक मर्यादा है। एक तरफ अतिशय उन्मुक्तता उच्छृंखल बनाती है तो दूसरी ओर अत्यधिक मर्यादा हमें संकुचित कर देती है इन दोनों में समन्वय प्रेमविवाह ही कर सकता है। अत:दोनों का मेल आवश्यक है प्रेम का भी और विवाह का भी। राजकुमार ने कहा-क्या तुम्हारा हृदय किसी के प्रति अनुरक्त है? अगर मैं तुम्हें प्रेयसी और पत्नी दोनों रुपों में स्वीकार करना चाहूं तो? राजकुमारी की भौहें तनीं-ओह! राजकुमार!तो क्या तुम्हारा यह चित्रकला प्रेम मुझ तक पहुँचने का माध्यम भर था? इतनी योजनायें बनाईं तुमने? राजकुमार ने गंभीर स्वर में कहा-राजकुमारी! योजनायें बना कर प्रेम नहीं व्यापार किया जाता है। यह सच है कि मैं इन चित्रों के कारण ही तुम्हारे प्रति उन्मुख हुआ पर ये हेतु भर हैं। योजना के अंग नहीं। राजकुमारी का मुख कमल अरुण हुआ। उसने कहा-ठीक है। तुम पिताजी से इस विषय में बात करो। उनकी सम्मति ही सर्वमान्य होगी मुझे।              फाल्गुन मास का आरम्भ हो गया है। इसी मास में राजकुमारी प्रीति सिंह चौहान और राजकुमार विशालदेव सिंह चौहान का विवाह संपन्न होगा। राजपुरोहित मंत्रों का अभ्यास कर रहे हैं,चारण गीतों का अभ्यास। सखियाँ टेसू और अमलतास के पुष्पों से विभिन्न रंग तैयार कर रही हैं। कुम्हार बर्तनों की सज्जा में लगे हैं। जौहरी आभूषणों में व्यस्त। सारा राज्य इस इस उत्सव की तैयारी में है। नियत समय पर द्वाराचार हुआ,पुरोहितों ने मंगल मंत्रोच्चार किए। चारणों ने मंगल गान गाए और सूर्योदय की प्रथम वेला में इक्यावन डोलियों के मध्य एक डोली में बैठकर राजकुमारी प्रीति महोबा की रानी बनकर चल दी। साथ में उसकी सेविका और सखी चंपा भी थी। राज्य की सीमा पर पहुँच कर डोलियाँ कुछ देर के लिए रुकीं। चंपा ने इठलाते हुए कहा-राजकुमारी जल ग्रहण करोगी? हाय!अब तो यह प्रश्न करने का अधिकार भी न रहा हमारा। राजकुमारी ने उसके कन्धे पर मारते हुए कहा-तुम बहुत चंचला हो। भला तुम्हारा यह अधिकार भी कोई ले सकता है? चंपा ने कहा-वैसे राजकुमारी आपने अपना प्रेम बड़ी सरलता से पा लिया। याद है उस दिन राजकुमार की सच्चाई पता चलते ही आप कितना रोईं थीं? कहीं न कहीं आप भी राजकुमार को चाहती थीं। है न! राजकुमारी ने शरमाते हुए कहा-चुप कर निर्लज्ज! डोलियों के भी कान होते हैं। फिर दोनों सखियों की मंद हँसी पर कहार भी मुस्कुरा उठे।                महोबा राज्य की सीमा तीन तरफ से चौहानवंशी राज्यों से सटी है।एक तरफ नदी है। इस रास्ते से हमेशा दस्युओं के आक्रमण होते रहते हैं।रानी प्रीति सामान्यतया राज्य के मामलों में प्रवेश नहीं करती थीं। पर उनके मन में एक भय बना रहता है।पिछले कुछ महीनों से देख रही हैं कि राजा विशालदेव राज्य कार्यों का बहाना कर बाहर ही रहते हैं। उनका मन किसी कार्य में नहीं लगता। रानी ने कुछ गुप्तचरों को राजा के कार्यों के निरीक्षण में भी लगाया था। पर वे गुप्तचर भी न जाने कहां चले गए।रानी प्रीति ने व्यग्र भाव से चंपा की गोद में सिर रखते हुए कहा-चंपा! राज्य पर भीषण संकट आने वाला है। मेरा हृदय काँप रहा है। चंपा ने कहा-महारानी! आप निश्चिंत रहें। कुलदेवी का आशीर्वाद हमारे साथ है। तभी प्रतिहारी ने आकर सूचना दी कि गुप्तचर प्रवेश की अनुमति चाहता है। रानी ने आज्ञा दी तो गुप्तचर ने आकर कहा- महारानी की जय हो!पहले मुझे अभयदान मिले तो आगे कहूँ। रानी ने कहा-तुम अभय होकर कहो।हम हर स्थिति के लिये तैयार हैं। गुप्तचर ने कहा -महाराज विशालदेव दस्यु सुन्दरी चन्द्रसेना के रुप जाल पर मोहित हैं।और दस्युओं से एक गुप्त सन्धि करना चाहते हैं जिससे चन्द्रसेना इनकी पत्नी बनेगी और सीमा से सटे चौहान राजाओं के विरुद्ध युद्ध में राजा विशालदेव दस्युओं के साथ रहेंगे...। रानी प्रीति पर जैसे बिजली गिर पड़ी। आँखों के सम्मुख चौहान वंश का पतन और अपनी शय्या पर पटरानी को सोचकर उनका हृदय काँप उठा। उन्होंने गुप्तचर को जाने की आज्ञा दी।               आज रानी प्रीति और विशालदेव के विवाह की दूसरी वर्षगाँठ है। रानी ने विवाह वाले वस्त्र ही पहने हैं। रात्रिभोज पर सभी कुलपुरोहित और आमात्य आमंत्रित थे। रानी ने राजा को शयनकक्ष में चलने का संकेत किया। रात्रि अब एक पहर बीत गई है। रानी की आँखों में नींद न थी। रानी ने राजा से कहा-विशाल देव आप मेरे पति ही नहीं, प्रेमी भी हैं। अगर आपको पता चले कि मेरा हृदय किसी और की कामना करता है तो आप क्या करेंगे? राजा विशालदेव चौंके करवट बदल कर कहा-मैं तुम्हारा मतलब नहीं समझा। रानी ने कहा-सीधा प्रश्न तो है। राजा ने कहा- तो....तो....तो मैं तुम्हारी जान ले लूंगा। रानी ने कहा-और आप? राजा ने कहा-मैं खुद भी विषपान कर प्राण दे दूंगा। रानी के मुख पर संतोष की छाया दिखी। उन्होंने राजा का मुख अपने हाथ में ले लिया और कहा-विशाल देव! मैं आपसे बहुत प्रेम करती हूँ। और आपको स्वयं के सिवा कहीं और नहीं देख सकती। मेरे लिए मेरा राज्य और मेरा प्रेम दोनों महत्वपूर्ण है... खैर! हमें इससे क्या? आज मैं अपने हाथों से आपको दूध पिलाऊंगी। और रानी ने सिरहाने रखा दूध का गिलास राजा के होठों से सटा दिया। फिर दूसरा गिलास स्वयं भी पी लिया। कुछ क्षण बाद रानी ने राजा से फिर कहा-विशालदेव आओ इस मिलन के अन्तिम क्षण में मैं तुम्हें निहार लूँ। राजा ने कहा- क्या मतलब? रानी ने कहा- इस दूध में मैंने विष मिलाया था। तुम दस्यु सुन्दरी चन्द्रसेना की ओर आकृष्ट हो। और राज्य के द्रोही भी। तुम्हें जिवित रहने का अधिकार नहीं। राजा ने कहा-और तुम ? रानी ने कहा-मैंने स्वयं भी विषपान किया है। मेरे दूध में भी विष था। राजा और रानी दोनों की आँखों में आँसू हैं। दोनों ने एक दूसरों का मुख हाथों में पकड़ लिया है। राजा ने लड़खड़ाते स्वर में कहा-रानी मुझे माफ करना... रानी ने भी आँसुओं के बीच मुस्कुराने की चेष्टा करते हुए कहा-मुझे भी.... असित कुमार मिश्र बलिया

2 comments:

  1. एक सांस में पढ़ गई ...अद्भुत प्रेम गाथा

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  2. देशभक्ति से लबरेज, मुग्ध कर देने वाली कहानी!!!

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